मैंने तुम लोगों को कई चेतावनियाँ दी हैं और तुम लोगों को जीतने के लिए कई सत्य दिए हैं। पहले के मुकाबले आज तुम लोग अधिक समझदार हो, बहुत से सिद्धांतों को समझते हो कि किसी व्यक्ति को कैसे होना चाहिए, और आस्थावान लोगों में जो सामान्य ज्ञान होना चाहिए, वह तुम लोगों में है। अनेक वर्षों में तुम लोगों ने यही सब अर्जित किया है। मैं तुम्हारी उपलब्धियों से इंकार नहीं करता हूं, लेकिन मुझे यह भी स्पष्ट कहना है कि मैं इन कई वर्षों में तुम्हारी अवज्ञा और विद्रोहों को भी नकार नहीं सकता, क्योंकि तुम में से कोई संत तो है नहीं, बिना किसी अपवाद के तुम लोगों को भी शैतान ने भ्रष्ट किया है, और तुम भी मसीह के शत्रु रहे हो। अब तक तुम लोगों के उल्लंघनों और तुम्हारी आज्ञालंघनों की संख्या अनगिनत है, यही वजह है कि मैं हमेशा तुम्हारे सामने अपने आपको दोहराता रहा हूं। मैं तुम्हारे साथ इस तरह पेश नहीं आना चाहता, लेकिन तुम्हारे भविष्यों की खातिर, तुम्हारी मंज़िलों की खातिर मैंने जो कुछ कहा है, उसके बारे में एक बार फिर से कहूंगा। मुझे आशा है कि तुम लोग मुझे ध्यान से सुनोगे, और मेरे हर शब्द पर विश्वास करोगे, इसके अलावा, मेरे शब्दों की गहराई और महत्व को समझोगे। मैं जो कुछ भी कहूँ उस पर संदेह न करो, या मेरे शब्दों को तुम लोग जैसे लेना चाहो लो और उन्हें दरकिनार कर दो, जो मेरे लिये असहनीय होगा। मेरे शब्दों को परखो मत, न उन्हें हल्के में लो, न ऐसा कुछ कहो कि मैं हमेशा तुम लोगों को फुसलाता हूँ, और न ही ऐसा कुछ कहो कि मैंने तुमसे जो कुछ कहा है वह सही नहीं है। ये सब मुझे सहन नहीं होता। क्योंकि तुम लोग मुझे और मेरी कही गई बातों को संदेह की नज़र से देखते हो, जिन बातों को मैं तुम लोगों से इतनी गंभीरता से कहता हूँ: उसे तुम लोग आत्मसात नहीं करते। मेरी कही बातों को दर्शन-शास्त्र से जोड़कर मत देखो, न उन्हें कपटी लोगों की झूठ के साथ जोड़ो, और न ही मेरे शब्दों की अवहेलना करो। भविष्य में शायद मेरी तरह बताने वाला, या इतनी उदारता से बोलने वाला, या एक-एक बात को इतने धैर्य से समझाने वाला तुम लोगों को और कोई नहीं मिलेगा। इन अच्छे दिनों को तुम लोग केवल याद करते रह जाओगे, ज़ोर-ज़ोर से सुबकोगे, अथवा दर्द से कराहोगे, या फिर उन अंधेरी रातों में जीवन-यापन कर रहे होगे जहाँ सत्य या व्यवस्थित जीवन का अंश-मात्र भी नहीं होगा, या नाउम्मीदी में बस इंतज़ार कर रहे होगे, या फिर ऐसा भयंकर पश्चाताप कर रहे होगे कि जिसका तुम लोगों के पास कोई उत्तर नहीं होगा…। ये जितनी अलग-अलग संभावनाएँ मैंने तुम लोगों को बताई हैं, इनसे वस्तुत: तुम में से कोई नहीं बच पाएगा। उसकी वजह है कि तुम में से कोई भी परमेश्वर की सच्ची आराधना नहीं करता। तुम लोग व्यभिचार और बुराई में डूब चुके हो। ये चीज़ें तुम्हारी आस्था, तुम्हारे अंतर्मन, आत्मा, तन-मन में घुल-मिल गई हैं। इनका जीवन और सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि ये चीज़ें इनके विरुद्ध जाती हैं। मुझे तुम लोगों को लेकर बस यही आशा है कि तुम लोगों को प्रकाश-पथ पर लाया जाए। मेरी एक मात्र यही कामना है कि तुम लोग अपना ख्याल रख पाओ, अपने गंतव्य पर इतना अधिक बल न दो कि अपने व्यवहार तथा आज्ञालंघन की ओर से उदासीन हो जाओ।
एक अरसे से परमेश्वर में आस्था रखने वाले लोगों को अब एक खूबसूरत गंतव्य की आशा है, परमेश्वर में आस्था रखने वाले लोगों को उम्मीद है कि सौभाग्य अचानक ही उनके सामने आ जाएगा, उन्हें आशा है कि उन्हें पता भी नहीं चलेगा और वे शांति से स्वर्ग में किसी स्थान पर विराजमान होंगे। लेकिन जो लोग इन खूबसूरत ख्यालों में जी रहे हैं, मैं उन्हें बता दूँ कि शायद उन्हें पता भी नहीं कि वे स्वर्ग से आने वाले सौभाग्य या स्वर्ग में किसी स्थान के पात्र हैं भी या नहीं। आज तुम लोग अपनी स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ़ हो, फिर भी यह उम्मीद लगाए बैठे हो कि तुम लोग अंतिम दिनों की विपत्तियों और दुष्टों को दंडित करने वाले परमेश्वर के हाथों से बच जाओगे। ऐसा लगता है जैसे हर वो इंसान जिसे शैतान ने दूषित कर दिया है, सुनहरे सपने देखता है और एक आरामतलबी की ज़िंदगी जीना चाहता है, न कि मात्र वो जो अत्यंत प्रतिभाशाली है। फिर भी, मैं तुम लोगों की अनावश्यक इच्छाओं और आशीष पाने की उत्सुकताओं पर लगाम लगाना चाहता हूँ। मान लो, तुम्हारे अतिक्रमण और आज्ञालंघन के तथ्य अनगिनत हैं, और जो बढ़ते ही जा रहे हैं, तो तुम्हारे भविष्य की खूबसूरत रूपरेखा से इनका सामँजस्य कैसे बैठेगा? यदि तुम बिना रुके, मनचाहे गलत मार्ग पर चलते रहना चाहते हो, और फिर भी चाहते हो कि तुम्हारे सपने पूरे हों, तो मैं तुमसे गुज़ारिश करूँगा कि तुम बिना जागे, अपनी उसी जड़ता में चलते रहो, क्योंकि तुम्हारे सपने थोथे हैं, और परमेश्वर के सामने तुम्हें अलग से कोई रियायत प्रदान नहीं की जाएगी। यदि तुम अपने सपने पूरे करना चाहते हो, तो कभी सपने मत देखो, बल्कि हमेशा सत्य का, तथ्यों का सामना करो। ख़ुद को बचाने का यही एकमात्र रास्ता है। ठोस रूप में इस पद्धति के चरण क्या हैं?
पहला, अपने सभी उल्लंघनों का परीक्षण करो, और अपने व्यवहार तथा उन विचारों की जाँच करो जो सच्चाई के अनुरूप नहीं हैं।
तुम लोग इसे आसानी से कर सकते हो, और मुझे लगता है कि विचारशील लोग यह कर सकते हैं। लेकिन जिन लोगों को यही नहीं पता कि उल्लंघन और सत्य होते क्या हैं, तो ऐसे लोग अपवाद हैं, क्योंकि मूलत: ऐसे लोग विचारशील नहीं होते। मैं ऐसे लोगों से बात कर रहा हूँ जो परमेश्वर से अनुमोदित हैं, ईमानदार हैं, जिन्होंने गंभीरता से परमेश्वर के आदेशों की अवमानना नहीं की है, और सहजता से अपने उल्लंघनों का पता लगा सकते हैं। मुझे तुम लोग से इस चीज़ की अपेक्षा है जो तुम लोग आसानी से कर सकते हो, लेकिन यही एकमात्र चीज़ नहीं है जो मैं तुम लोगों से चाहता हूँ। मेरा ख्याल है, चाहे कुछ भी हो जाए, अकेले में इस अपेक्षा पर तुम लोग हँसोगे तो नहीं, या कम से कम इसे हिकारत से नहीं देखोगे या फिर हल्के में नहीं लोगे। इसे गंभीरता से लो और ख़ारिज मत करो।
दूसरा, अपने प्रत्येक उल्लंघनों और अवज्ञाओं के लिये तद्नुरूप सत्य खोजो और इन सच्चाइयों का प्रयोग उन्हें हल करने के लिए करो, और फिर उल्लंघन करने वाले कृत्यों और अवज्ञाकारी विचारों और कृत्यों के स्थान पर सत्य को अमल में लाओ।
तीसरा, एक ईमानदार इंसान बनो, न कि एक ऐसा इंसान जो हमेशा चालबाज़ी या कपट करे। (मैं फिर तुम लोगों से ईमानदार इंसान बनने की बात कह रहा हूँ।)
यदि तुम इन तीन चीज़ों को कर पाओ तो तुम ऐसे ख़ुशकिस्मत इंसान हो, जिसके सपने पूरे होते हैं और जो सौभाग्य प्राप्त करता है। इन तीन नीरस अनुरोधों को या तो तुम लोग गंभीरता से लोगे या फिर लापरवाही से। ख़ैर, तुम लोग जैसे चाहो लो, मेरा लक्ष्य तुम्हारे सपने पूरा करना, तुम्हारे आदर्शों को अमल में लाना है, न कि तुम्हारा उपहास करना या तुम लोगों को बेवकूफ़ बनाना।
हो सकता है मेरी मांगें सरल हों, लेकिन मैं जो कह रहा हूँ वह कोई दो दूनी चार जितना आसान नहीं है। अगर तुम लोग कुछ भी बोलोगे, बेसिर-पैर की बातें करोगे, ऊँची-ऊँची फेंकोगे, तो फिर तुम्हारी योजनाएँ और ख़्वाहिशें धरी की धरी रह जाएंगी। मुझे तुम में से ऐसे लोगों से कोई सहानुभूति नहीं होगी जो बरसों कष्ट झेलते हैं और मेहनत करते हैं, लेकिन उनके पास दिखाने को कुछ नहीं होता। इसके विपरीत, जो लोग मेरी माँगें पूरी नहीं करते, मैं ऐसे लोगों को पुरस्कृत नहीं, दंडित करता हूँ, सहानुभूति तो बिल्कुल नहीं रखता। शायद तुम्हारा ख़्याल है कि चूँकि बरसों अनुयायी बने रहकर तुम लोगों ने बहुत मेहनत कर ली है, भले ही वह कैसी भी रही हो, सेवक होने के नाते, परमेश्वर के भवन में कम से कम तुम लोगों को एक कटोरी चावल तो मिल ही जायेगा। मेरा तो मानना है कि तुम में से अधिकांश की सोच यही है क्योंकि अब तक तुम लोगों की सोच यही रही है कि किसी को अपना फायदा मत उठाने दो, लेकिन दूसरों से ज़रूर लाभ उठा लो। इसलिए मैं एक बात बहुत ही गंभीरता से कहता हूँ: मुझे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि तुम्हारी मेहनत कितनी सराहनीय है, तुम्हारी योग्यताएं कितनी प्रभावशाली हैं, तुम कितने बारीकी से मेरा अनुसरण कर रहे हो, तुम कितने प्रसिद्ध हो, या तुम कितने उन्नत प्रवृत्ति के हो; जब तक तुमने मेरी अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है, तब तक तुम मेरी प्रशंसा प्राप्त नहीं कर पाओगे। जितनी जल्दी हो सके, तुम अपने विचारों और गणनाओं को ख़ारिज कर दो, और मेरी अपेक्षाओं को गंभीरता से लेना शुरु कर दो। वरना मैं अपना काम समाप्त करने के लिये सारे लोगों को भस्म कर दूँगा, और ज़्यादा से ज़्यादा मैं अपने वर्षों के कार्य और पीड़ाओं को शून्य में बदल दूँगा, क्योंकि मैं अगले युग में, अपने शत्रुओं और शैतान की तर्ज़ पर बुराई में लिप्त लोगों को अपने राज्य में नहीं ला सकता।
मेरी बहुत-सी इच्छाएं हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग अपने आचरण को उपयुक्त और बेहतर बनाओ, अपने दायित्व पूरी निष्ठा से पूरे करो, तुम्हारे अंदर सच्चाई और मानवीयता हो, ऐसे बनो जो अपना सर्वस्व, अपना जीवन परमेश्वर के लिये न्योछावर कर सके, वगैरह-वगैरह। ये सारी कामनाएँ तुम्हारी कमियों, भ्रष्टता और अवज्ञाओं से उत्पन्न होती हैं। अगर तुम लोगों से मेरी तमाम बातचीत भी तुम्हारा ध्यान आकर्षित नहीं कर सकी तो फिर शायद मेरा चुप हो जाना ही बेहतर है। हालाँकि, तुम लोग इसके परिणाम को समझ सकते हो। मैं कभी आराम नहीं करता, तो अगर बोलूंगा नहीं तो कुछ ऐसा करूँगा जिधर लोगों का ध्यान जाए। मैं किसी की जीभ गला सकता हूँ, या किसी का अंग-भंग कर उसे मृत्यु दे सकता हूँ, या किसी को स्नायु रोग दे सकता हूँ और उन्हें ऐसा बना सकता हूँ कि वे पागलों जैसी हरकतें करें। और फिर मैं कुछ लोगों के लिए ऐसा उत्पीड़न पैदा कर सकता हूँ जो उन्हें झेलना पड़े। इस तरह मुझे अच्छा लगेगा, बेहद ख़ुशी और प्रसन्नता होगी। हमेशा से “भलाई का बदला भलाई से और बुराई का बदला बुराई से,” दिया जाता रहा है, तो अब क्यों नहीं? यदि तुम मेरा विरोध करना चाहते हो और मेरे बारे में राय व्यक्त करना चाहते हो, तो मैं तुम्हारे मुँह को गला दूँगा, और उससे मुझे अपार प्रसन्नता होगी। क्योंकि आख़िरकार ऐसा तुमने कुछ नहीं किया जिसका सच्चाई से, ज़िंदगी से कुछ भी लेना-देना हो, जबकि मेरे हर कार्य में सच्चाई होती है, हर चीज़ मेरे तय किए गए कार्यों के सिद्धांतों और आदेशों से सम्बद्ध होती है। अत: मेरी तुम सभी से गुज़ारिश है कि कुछ गुण संचित करो, बुराई करना बन्द करो, और फुरसत के समय में मेरी माँगों पर विचार करो। तब मुझे ख़ुशी होगी। यदि तुम लोग जितना समय देह-सुख में लगाते हो, उसका हज़ारवाँ हिस्सा भी सच्चाई में लगाओ, तो मैं तो कहूँगा कि तब न तो तुम बहुधा उल्लंघन करोगे और न तुम्हारा मुँह विगलित होगा। बताओ, ऐसा होगा कि नहीं?
तुम जितना अधिक उल्लंघन करोगे, अपने गंतव्य को पाने के तुम्हारे अवसर उतने ही कम होते जाएँगे। इसके विपरीत, उल्लंघन जितने कम होंगे, परमेश्वर की प्रशंसा पाने के तुम्हारे अवसर उतने ही बढ़ जाएँगे। यदि तुम्हारे उल्लंघन इतने बढ़ जाएँ कि मैं भी तुम्हें क्षमा न कर सकूँ, तो फिर समझ लो कि तुमने माफ़ी पाने के अपने सारे अवसर गँवा दिए। तब तुम्हारा गंतव्य उच्च की बजाय निम्न होगा। यदि तुम्हें मेरी बातों पर यकीन नहीं है, तो बेधड़क गलत काम करो और फिर ख़ुद ही उसके नतीजे देखो। यदि तुम ईमानदार हो और सत्य पर अमल करते हो तो यह मौका ज़रूर आएगा कि तुम्हारे उल्लंघनों को क्षमा कर दिया जाए, और इस तरह तुम्हारे आज्ञालंघन कम से कमतर होते चले जाएँगे। और यदि तुम सत्य पर अमल नहीं करना चाहते, तो परमेश्वर के समक्ष तुम्हारे उल्लंघन बढ़ते ही जाएँगे, तुम्हारे आज्ञालंघनों में वृद्धि होती जाएगी, और ऐसा तब तक होगा जब तक तुम पूरी तरह तबाह न हो जाओ, और तब आशीष पाने का तुम्हारा खूबसूरत सपना चूर-चूर हो चुका होगा। अपने उल्लंघनों को किसी नादान या बेककूफ़ इंसान की गलतियां मत मान बैठो, न ही इस बहानेबाज़ी की आड़ में छुपने का प्रयास करना कि तुम्हारे अंदर सत्य पर अमल करने की कुव्वत ही नहीं है, और उससे भी अधिक, अपने उल्लंघनों को किसी अज्ञानी व्यक्ति के कृत्य मत समझ बैठना। यदि तुम स्वयं को क्षमा करने की कला में सिद्ध-हस्त हो और ख़ुद के प्रति उदार भाव रखते हो, तो तुम एक ऐसे कायर इंसान हो जिसे कभी सत्य हासिल नहीं होगा, तुम्हारे उल्लंघन किसी साये की तरह तुम्हारा पीछा करेंगे, सत्य की अपेक्षाओं को कभी पूरा नहीं होने देंगे और हमेशा के लिये शैतान का चिर-स्थायी साथी बना देंगे। लेकिन फिर भी मेरी सलाह है: केवल अपने लक्ष्य पर दृष्टि मत रखो, अपने गुप्त उल्लंघनों को नज़रंदाज़ मत करो; उन्हें गंभीरता से लो, अपने लक्ष्य की चिंता में अपने उल्लंघनों के प्रति असावधान मत रहो।